17 एवम् 18 दिसम्बर : विहंगम योग संत समाज का 100वाँ वार्षिक महोत्सव

17 एवम् 18 दिसम्बर : विहंगम योग संत समाज का 100वाँ वार्षिक महोत्सव


विहंगम योग संत-समाज के 100वें वार्षिकोत्सव को इस वर्ष ”शताब्दी समारम्भ महोत्सव” के रूप में दिनांक 17 एवं 18 दिसम्बर 2023 (मार्गशीर्ष शुक्ल पञ्चमी, षष्ठी) को स्वर्वेद महामन्दिर धाम, उमरहाँ, वाराणसी में बहुत ही भव्यता एवं दिव्यता के साथ मनाया जाएगा। इस पावन अवसर पर विशालतम 25,000 कुण्डीय स्वर्वेद ज्ञान महायज्ञ का बृहद् आयोजन किया जाएगा।

इसी पावन तिथि पर विहंगम योग के प्रणेता अनन्त श्री सद्गुरु सदाफलदेव जी महाराज ने वर्ष 1924 ई० में मानवमात्र के कल्याणार्थ बलिया (उत्तर प्रदेश) के पकड़ी ग्राम स्थित वृत्तिकूट आश्रम में लक्षाहुति-यज्ञ के पश्चात् ब्रह्मविद्या विहंगम योग के प्रचार के निमित्त ‘संत समाज’ की स्थापना की थी। यह संत-समाज के स्थापना दिवस का पावन पर्व है, जिसे हम वार्षिकोत्सव के रूप में मनाते चले आ रहे हैं।
इस वार्षिकोत्सव समारोह में भारत के कोने-कोने और विश्व के कई देशों से लाखों जिज्ञासुवृंद दिव्यवाणी (जय स्वर्वेद कथा), अमृतवाणी, वैदिक हवन-यज्ञ एवं सद्गुरु-दर्शन का दुर्लभ सौभाग्य प्राप्त करने आते हैं और इस विशाल संत-समागम में अपने जीवन में एक नई प्रेरणा पाते हैं, जिससे प्रत्येक जिज्ञासु का भौतिक एवं आध्यात्मिक कल्याण होता है।

भारत की सांस्कृतिक राजधानी वाराणसी में बन रहे विशालतम साधना केन्द्र, स्वर्वेद महामन्दिर धाम के निर्माणार्थ आयोजित, बृहद् ”स्वर्वेद ज्ञान महायज्ञ” में आपका स्वागत है। 25,000 हवन कुण्डों के इस वैदिक महायज्ञ में आहुति देने लाखों की संख्या में सेवाभावी श्रद्धालुगण पधार रहे हैं।

सद्गुरुदेव ने अपने प्रत्यक्ष योग-समाधिजन्य अनुभवों को हिमालय की कन्दरा में अध्यात्म-जगत् के अद्वितीय सद्ग्रन्थ ‘स्वर्वेद’ के रूप में लिपिबद्ध किया है। सरल दोहों के रूप में रचित ‘स्वर्वेद’ महाग्रन्थ से हमें ब्रह्मविद्या के तत्त्वज्ञान और अनुभवात्मक साधना का सम्पूर्ण बोध होता है। अशान्ति एवं वैमनस्य से पीड़ित विश्व में शांति एवं सौहार्द की स्थापना करने का सर्वश्रेष्ठ माध्यम है- स्वर्वेद। महामन्दिर का हृदय हैं दुर्लभ मकराना संगमरमर पर उत्कीर्ण ‘स्वर्वेद’ के समस्त दोहे, जो महामन्दिर की दीवारों पर सुशोभित हो इसे आध्यात्मिक ऊर्जा का एक जीवंत केन्द्र बना रहे हैं। अतिसुन्दर शिल्पकला एवं आधुनिक तकनीक के सामंजस्य से बन रहे इस विशाल सप्ततलीय स्वर्वेद महामन्दिर में जब 20,000 साधक एक साथ बैठकर ध्यान करेंगे तो एक अद्भुत आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार होगा।

हम भूल न जायें, जीवन अल्प है। जिन्दगी जीने में ही जिन्दगी बीत जाती है। जीवन की सार्थकता तो सेवा में है। यह कार्यक्रम सेवा का एक दुर्लभ अवसर है। सद्गुरु-सेवा से इस संसार में हमें धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष चारों फलों की निश्चय ही प्राप्ति हो जाती है और यज्ञ तो समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति का माध्यम है ही। इस कार्यक्रम में ब्रह्म-आधार से आहूत, यज्ञ के दुर्लभ एवं अमोघ वेदमन्त्रों से हमारी अंतरात्मा गुंजायमान होने वाली है। सुपूज्य संत प्रवर श्री विज्ञानदेव जी महाराज की दो-दिवसीय संगीतमयी दिव्यवाणी (जय स्वर्वेद कथा) एवं सद्गुरु आचार्य श्री स्वतन्त्रदेव जी महाराज की अमृतवाणी से अगणित जीवन बदलने वाले हैं। विहंगम योग की ध्यान-साधना से दिव्य आध्यात्मिक अनुभव भी हमें प्राप्त होने वाले हैं। इस परम पावन शताब्दी समारम्भ महोत्सव में विहंगम योग के प्रणेता सद्गुरु सदाफलदेव जी महाराज की पावन मूर्ति के भव्य एवं दिव्य निर्माण का शिलान्यास भी होगा। ऐसा अद्भुत, ऐतिहासिक एवं दुर्लभ कार्यक्रम है यह-”शताब्दी समारम्भ महोत्सव एवं 25000 कुण्डीय स्वर्वेद ज्ञान महायज्ञ”।

अत: ऐसे ऐतिहासिक एवं दुर्लभ अवसर पर सन्त प्रवर श्री विज्ञानदेव जी महाराज की दिव्यवाणी (जय स्वर्वेद कथा) तथा सद्गुरुदेव की अमृतवाणी एवं दर्शन-लाभ से अपने भौतिक एवं पारमार्थिक जीवन को मंगलमय बनावें।

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